सुप्रीम कोर्ट ने कहा  पत्नी बनाए माता-पिता से अलग होने का दबाव तो पति दे सकता है तलाक

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​अगर आप अपने माता-पिता के साथ रहना चाहते हैं और पत्नी इस बात का विरोध कर रही है तो अदालत की नजर में यह जायज नहीं है। इस आधार पर पति का तलाक लेना जायज हो सकता है।   सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बुजुर्ग मां-बाप के साथ रहना और उनका ख्याल रखना एक बेटे का ‘पवित्र कर्तव्य’ है।

न्यायमूर्ति अनिल आर दवे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि पत्नी अपने पति के परिवार का हिस्सा होती है। सिर्फ इसलिए कि वह अपने पति की आमदनी का पूरा मजा ले सके, पति को अपने मां-बाप से अलग होने का दबाव नहीं डाल सकती। अपने आदेश में शीर्ष अदालत ने कहा कि पत्नी द्वारा पति को मां-बाप से अलग रखने के लिए दबाव डालना पश्चिमी सोच है। यह भारतीय संस्कृति और स्वभाव के विपरीत है। पीठ ने कहा कि भारत में शादी के बाद हिंदू बेटे का अपने मां-बाप को छोड़ पत्नी के साथ अलग रहना आम प्रचलन नहीं है, वह भी खासकर तब जब वह बेटा ही परिवार में कमाऊ हो। 

पीठ ने कहा, मां-बाप बच्चों की परवरिश करते हैं और उन्हें पढ़ाते-लिखाते हैं, ऐसे में बेटे का मौलिक और कानूनी दायित्व है कि वह अपने बूढ़े मां-बाप का ख्याल रखे, खासकर तब जब उसके मां-बाप के पास आमदनी का कोई स्रोत न हो या मामूली आमदनी हो।अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि भारत में आमतौर पर लोग पश्चिमी विचारधारा को अपनाना पसंद नहीं करते हैं। पश्चिमी सभ्यता में शादी के बाद या बालिग होने पर बेटा मां-बाप से अलग हो जाता है।

फैसले में कहा गया कि पत्नी से यह उम्मीद की जाती है कि वह पत्नी के साथ रहे। पत्नी पति के परिवार का अहम हिस्सा होती है। आमतौर पर बिना किसी न्यायसंगत या उचित कारणों के पत्नी अपने पति पर  मां-बाप से अलग रहने का दबाव नहीं डाल सकती। शीर्ष अदालत ने यह व्यवस्था कर्नाटक के एक दंपति के तलाक को स्वीकार करते हुए दी है। इन दोनों की शादी 1992 में हुई थी। निचली अदालत ने पति को तलाक लेने की इजाजत दे दी थी। पति ने पत्नी पर निर्दयता का आरोप लगाया था।

पति का कहना था कि पत्नी बार-बार नौकरानी के साथ उसके अवैध संबंध को लेकर शक करती थी, लेकिन सच्चाई यह है कि उनके यहां कभी भी नौकरानी नहीं थी। एक बार पत्नी ने खुदकुशी की कोशिश की थी लेकिन उसे ऐन वक्त पर बचा लिया गया। वास्तव में पत्नी अपने पति को उसके मां-बाप से अलग करना चाहती थी। हालांकि हाईकोर्ट ने निचली अदालत को फैसले को पलटते हुए कहा था कि पति की आमदनी उस पर खर्च हो, यह पत्नी की ‘वैध चाह’ है। इस फैसले को पति ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

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