इस समाज में स्त्री माल है,आइटम है उपभोग की चीज़ है।

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​बुलंदशहर काण्ड कोई अकेली घटना नहीं है।  यह किसी गैंग की कारिस्तानी नहीं है।  और इसे न तो कोई मुख्यमंत्री रोक सकता है , न कोई प्रधानमंत्री।  यह आइसोलेशन में घटी घटना नहीं है।  
रिक्शावाला जब किसी महिला सवारी को बिठाता है तो देखिये उसकी आँखों में लालच का पानी।  एक ऑटो ड्राइवर जब किसी युवती या बच्ची को बिठाता है तो देखिये उसकी नजर।  वह आधा वक्त मिरर में ही देखता रहता है।  बस कंडक्टर, ड्राइवर को देखिये, हवस होती है उनकी आँखों में। न न।  जो रेप नहीं करता या नहीं किया, वह भी रेपिस्ट होता है।  स्त्रियां समझती है।  

दूर मत जाइये, अपने पास के बाजार में सब्जी वाले की बातें सुनिये, फल बेचने वाले लड़को की बाते सुनिये, उनके द्विअर्थी संवाद सुनिये।  वे रिपीटेडली रेप करते हैं, बातों से, नज़रों से।  स्त्रियां रोज़ झेलती हैं।  
स्कूल की बच्चियों से पूछिये, कैसे देखता हैं उन्हें गार्ड, स्कूल बस का कंडक्टर, ड्राइवर, माली और उनका टीचर भी। स्कूल टीचर से पूछिये, कहाँ कहाँ कैसे कैसे बचती हैं वे।  काम वाली बाइयों से पूछिये।  बैंक में काम करने वाली स्मार्ट वुमेन से पूछिये, पुलिस में काम करने वाली एम्पावर्ड वुमेन से पूछिये, सब टारगेट हैं।  और उन्हें कोई एलियन टारगेट नहीं कर रहा।  
अपने आसपास देखिये।  रेल में देखिये। मेट्रो में देखिये।  हवाईअड्डे पर देखिये।  किसी अकेली लड़की को घूरती नज़रों को देखिये। शरीफ लोग स्कैन कर लेते हैं उन्हें। ये सब एक तरह से रेप ही है।  स्त्रियां रोज़ गुज़रती हैं इस पीड़ा से।  
देखिये कभी अपनी पुलिस को भी। स्त्रियों के प्रति उनका नजरिया कभी अनौपचारिक बातचीत में सुनिये।  घर से निकलने वाली हर औरत उनके लिए ख़राब है, और घर के भीतर वाली औरतें चीज़।  
यह समस्या क़ानून व्यवस्था की नहीं है।  यह शिक्षा की भी नहीं है।  यह समस्या सोसल कंडीशनिंग की है।  जहाँ चारो ओर केवल यही सिखाया जाता है कि स्त्री केवल स्त्री है।  माल है, उपभोग की चीज़ है।  इसका न किसी पोलिटिकल पार्टी से सम्बन्ध है, न किसी राज्य से।  सब जगह एक ही सोच है।  स्त्री एक चीज़ है। रोज़ ही बुलंदशहर, रोज़ ही निर्भया काण्ड होता है हमारे बीच। यह कोई ऑर्गेनाइज़्ड क्राइम नहीं है कि पुलिस पेट्रोलिंग, मुखबिर से, इंटेलिजेंस के सपोर्ट से रोक लेंगे आप।    

और हाँ , कभी लोकल संगीत को देख लीजिये, किसी भी भाषा में देख लीजिये, उत्तर से दक्खिन तक, पूरब से पश्चिम तक,  कितना गन्दा है वह, कितना हिंसक है वह ।  साथ ही ,  कितनी सहजता से उपलब्ध है ये सब …..  
लोग इस समाज को हिंसक बना रहे हैं और बलात्कारी पैदा कर रहे हैं। और इस सब का दोषी वह कथित 80% फिल्मकार है जो अपने हल्के और ओछेपन से कुसंस्कार परोस रहा है । जिसे  बुद्धि हीन लोग आत्मसात कर रहे है और अंजाम दे रहे हैँ ।

फूहड़ता के इस समाज विरोधी कुचक्र के खिलाफ विरोध का स्वर उठाइये और अपनी पीढ़ी सुरक्षित कीजिये
अज्ञात

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