पढ़िए बिहार के एक पिता की जुबानी – शाहबुद्दीन प्रकरण।

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सीवान शहर में मेरी दो दुकानें थीं. एक किराने की और दूसरी परचून की. समृद्ध और संपन्न न भी कहें तो कम से कम खाने-पीने की कमाई तो होती ही थी. मैं छह संतानों का पिता था. चार बेटे, दो बेटियां. मैं उस दिन किसी काम से पटना गया हुआ था. अपने भाई के पास रुका हुआ था. मेरे भाई पटना में रिजर्व बैंक में अधिकारी थे. सीवान शहर में मेरी दोनों दुकानें खुली हुई थीं. एक पर सतीश बैठता था, दूसरे पर गिरीश. मेरे पटना जाने के पहले मुझसे दो लाख रुपये की रंगदारी मांगी जा चुकी थी. उस रोज किराने की दुकान पर डालडे से लदी हुई गाड़ी आई हुई थी.
दुकान पर 2.5 लाख रुपये जुटाकर रखे थे. रंगदारी मांगने वाले फिर पहुंचे. दुकान पर सतीश था. सतीश ने कहा कि खर्चा-पानी के लिए 30-40 हजार देना हो तो दे देंगे, दो लाख रुपये कहां से देंगे. रंगदारी वसूलने आए लोग ज्यादा थे. उनके हाथों में हथियार थे. उन लोगों ने सतीश के साथ मारपीट शुरू की, गद्दी में रखे हुए 2.5 लाख रुपये ले लिए. राजीव यह सब देख रहा था. वह घर में गया. आम लोगों के पास घर में कौन सा हथियार होता है , बाथरूम साफ करने वाला तेजाब रखा हुआ था. मग में उड़ेलकर लाया, भाई को गुंडों से बचाने के लिए गुस्से में उसने तेजाब फेंक दिया जो रंगदारी वसूलने आए कुछ लोगों पर पड़ गया. तेजाब के छीटें मेरे बेटे राजीव पर भी आए. भगदड़ मच गई, अफरातफरी का माहौल बन गया.
इसके बाद उन लोगों ने सतीश को पकड़ लिया. राजीव भागकर छुप गया. फिर मेरी दुकान को लूटा गया. जो बाकी बचा उसमें पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी गई. गिरीश दूसरी दुकान पर था. उसे इन बातों की कोई जानकारी नहीं थी. कुछ देर बाद उसके पास भी कुछ लोग पहुंचे और उसे भी उठाकर ले गए।
थोड़ी देर में राजीव को भी ले गए, तीनों बेटे उनके कब्ज़े में थे। राजीव को बाँध दिया गया। राजीव की आंखों के सामने उसके छोटे भाइयों सतीश और गिरीश को तेजाब से जलाकर मार डाला गया. तेजाब से नहलाते वक्त वे लोग कहते रहे कि राजीव को अभी नहीं मारेंगे, इसे दूसरे तरीके से मारेंगे. सतीश और गिरीश को जलाने के बाद उन्हें कसाइयों की तरह काटा गया, फिर उनके शव पर नमक डालकर बोरे में भरकर फेंक दिया गया.
मैं पटना में था मुझे फोन आया कि आपके दोनों बेटों को मार दिए हैं तीसरा मेरे कब्जे में है इसलिए सीवान में अभी नहीं आना। धमकी के बाद मैं पटना में रुक गया। तीसरा बेटा अकेला उनके कब्जे में था।
दो दिनों बाद राजीव वहां से भागने में सफल रहा. गन्ने से लदे एक ट्रैक्टर से राजीव चैनपुर के पास उतर गया, फिर वहां से उत्तर प्रदेश के पड़रौना पहुंचा. राजीव वहीँ छुप गया। इस बीच मुझे झूठी खबर दी गयी पटना में ही कि राजीव छत से गिरकर pmch अस्पताल में भर्ती है, जल्दी से आ जाओ। असल में मुझे उस अस्पताल में ही बुलाकर मारने का प्लान बना लिया गया था।
पर मैं समझ गया था इसलिए हिम्मत जुटाकर सीवान गया. वहां जाकर एसपी से मिलना चाहा. एसपी से नहीं मिलने दिया गया. थाने पर दारोगा से मिला. दारोगा ने कहा कि अंदर जाइए पहले. फिर कहा गया कि आप इधर का गाड़ी पकड़ लीजिए, चाहे उधर का पकड़ लीजिए, किधर भी जाइए लेकिन सीवान में मत रहिए. सीवान में रहिएगा तो आपसे ज्यादा खतरा हम लोगों पर है. पूरा प्रशासन खुद डर से काँप रहा था।
मैं बिल्कुल अकेला पड़ गया था. अब तक मेरे बेटे राजीव के बारे में कुछ भी नहीं पता चला था कि वह जिंदा भी है या नहीं. है भी तो कहां है. मेरी पत्नी-बेटी और मेरा एक विकलांग बेटा कहां रह रहा है, वह भी नहीं पता था. मैं डर से पटना ही रहने लगा. साधु की तरह दाढ़ी-बाल बढ़ गए.
किसी तरह भीड़ में घुस कर नेताजी (शायद लालू) से मिला तो वो भड़क गए, बोले सीवान का कंप्लेन करने तू सोनपुर कैसे आ गया। फिर ऐन दिल्ली चला गया कि सोनिया गांधी से मिलूंगा। राहुल जी मिले, उन्होंने कहा कि आप जाइए, बिहार में राष्ट्रपति शासन लगने वाला है, आपकी मुश्किलों का हल निकलेगा. फिर हिम्मत जुटाकर सीवान आया. दिल्ली भी फेल हो गयी थी।
मैंने एएसपी साहब से चिट्ठी देने जाना था, कुछ लोगों को साथ चलने को कहा, सभी ने कहा नहीं हमें तुम्हारे साथ जाते देख लिया तो मरना तय है। फिर मैं अँधेरे मुंह सुबह में पांच बजे छुपते हुए एसएसपी के आवास पहुंचा। सुरक्षाबलों से बहुत कहने के बाद लुंगी-गंजी (बनियान) में एसपी साहब आए. मैंने कहा कि सुरक्षा चाहिए, यह चिट्ठी है. एसपी साहब ने कहा कि आप कहीं और चले जाइए, सीवान अब आपके लिए नहीं है. चाहे तो यूपी चले जाइए या कहीं और. ये भी शहाबुद्दीन के राज में उसके आदमी निकले।
अब मैंने तय कर लिया कि सीवान में ही रहूँगा। कहाँ भागता फिरूँ ? डीआईजी साहब ने मदद की. उन्होंने एसपी साहब से कहा कि इन्हें सुरक्षा दीजिए, अगर आपके पास जिले में बीएमपी के जवान नहीं हैं तो मैं दूंगा लेकिन इन्हें सुरक्षा दीजिए. फिर मैं वहीँ रहने लगा, एक जीवित बचा बेटा राजीव लौट आया तो जीने की उम्मीद जागी। बेटे राजीव की शादी की.
शादी के सिर्फ 18वें ही दिन और मामले में गवाही के ठीक तीन दिन पहले उसे मार दिया गया. मेरा बेटा राजीव चश्मदीद गवाह था. मेरा बेटा राजीव इसके पहले भी कोर्ट में अपना बयान देने गया था. जिस दिन बयान देने गया था उस दिन भी उसे कहा गया था, ‘हमनी के बियाह भी कराईल सन आउरी श्राद्ध भी.’
जब गवाह ही नहीं बचते तो रिहाई होनी ही थी। मेरी आमदनी सिर्फ 6 हज़ार रुपये है। बीमार पत्नी और बाकी विकलांग लोगों का खर्च इसी में चलता है। शहाबुद्दीन ने हँसते खेलते परिवार को उजाड़ दिया। मैं अकेला नहीं हूँ, ऐसी कहानी के भुक्तभोगी अनगिनत हैं। ये बिहार है।

(एक पिता की जुबानी)

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