पढ़िए हिंदी भाषा का इतिहास- डॉ विजय मिश्रा

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1878

हिंदी दिवस की मंगलकामनाये
हिंदी दिवस के दिन हमें हिंदी भाषा के विषय में जानने का सौभाग्य मिलता है अभी तो शायद इतना ही पर्याप्त है। एक पोस्ट में लिखा था की यदि आपको UN की सभी 6 भाषा का ज्ञान हो तो बड़े गर्व की बात है पर यदि हम में से किसी को हिंदी लिखने और बोलने में गर्व ना हो तो बड़े शर्म की बात है। 
विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने बाली हमारी हिंदी पर हमें गर्व होना चाहिए। सुबह से एक प्रश्न दिमाग को खाए जा रहा है की हिंदी भाषा से पहले हमें किस भाषा का ज्ञान था? मेरा मानना है की 1000 ई.के आसपास से पहले भारत टुकडो में बंटा था और भाषा भी अलग अलग थी जिसको हम एक नाम नही दे अपित कई विद्वान् देशी भाषा कहते है सिंध नदी के अधोभाग के आसपास जो देश है उस में ब्राचड़ा नाम की अपभ्रंश भाषा बोली जाती थी, कोहिस्तानी और काश्मीहरी भाषा,  वैदर्भी अथवा दाक्षिणात्यक नाम की अपभ्रंश भाषा, बंगाल की खाड़ी तक ओडरी या उत्कतली आदि आदि  
हिन्दी भाषा का इतिहास
आज हम जिस भाषा को हिन्दी के रूप में जानते है, वह आधुनिक आर्य भाषाओं में से एक है। आर्य भाषा का प्राचीनतम रूप वैदिक संस्कृत है, जो साहित्य की परिनिष्ठित भाषा थी। वैदिक भाषा में वेद, संहिता एवं उपनिषदों-वेदांत का सृजन हुआ है। वैदिक भाषा के साथ-साथ ही बोलचाल की भाषा संस्कृत थी,जिसे लौकिक संस्कृत भी कहा जाता है। संस्कृत का विकास उत्तरी भारत में बोली जाने वाली वैदिककालीन भाषाओं से माना जाता है। अनुमानत: ८ वी.शताब्दी ई.पू.में इसका प्रयोग साहित्य में होने लगा था। संस्कृत भाषा में ही रामायण तथा महाभारत जैसे ग्रन्थ रचे गए। वाल्मीकि, व्यास, कालिदास, अश्वघोष, माघ, भवभूति, विशाख, मम्मट, दंडी तथा श्रीहर्ष आदि संस्कृत की महान विभूतियां है। इसका साहित्य विश्व के समृद्ध साहित्य में से एक है।
हिन्दी भाषा की उत्पत्ति और विकास

संसार का सबसे प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद है। ऋग्वेद से पहले भी सम्भव है कोई भाषा रही हो परन्तु आज तक उसका कोई लिखित रूप नहीं प्राप्त हो पाया है। इससे यह अनुमान होता है कि सम्भवतः आर्यों की सबसे प्राचीन भाषा ऋग्वेद की ही भाषा, वैदिक संस्कृत ही थी। विद्वानों का मत है कि ऋग्वेद की भी एक काल अथवा एक स्थान पर रचना नहीं हुई। इसके कुछ मन्त्रों की रचना कन्धार में, कुछ की सिन्धु तट पर, कुछ की विपाशा-शतद्रु के संभेद (हरि के पत्तन) पर और कुछ मन्त्रों की यमुना गंगा के तट पर हुई। इस अनुमान का आधार यह है कि इन मन्त्रों में कहीं कन्धार के राजा दिवोदास का वर्णन है, तो कहीं सिन्धु नरेश सुदास का। इन दोनों राजाओं के शासन काल के बीच शताब्दियों का अन्तर है। इससे यह अनुमान होता है कि ऋग्वेद की रचना सैकड़ों वर्षों में जाकर पूर्ण हुई और बाद में इसे संहित-(संग्रह)-बद्ध किया गया। धीरेन्द्र वर्मा का मत है कि पतञ्जलि (पाणिनि की व्याकरण अष्टाध्यायी के महाभाष्यकार) के समय में व्याकरण शास्त्र जानने वाले विद्वान् ही केवल शुद्ध संस्कृत बोलते थे, अन्य लोग अशुद्ध संस्कृत बोलते थे तथा साधारण लोग स्वाभाविक बोली बोलते थे, जो कालान्तर में प्राकृत कहलायी। डॉ. चन्द्रबली पांडेय का मत है कि भाषा के इन दोनों वर्गों का श्रेष्टतम उदाहरण वाल्मीकि रामायण में मिलता है, जबकि अशोक वाटिका में पवन पुत्र ने सीता से ‘द्विजी’ (संस्कृत) भाषा में बात न करके ‘मानुषी’ (प्राकृत) भाषा में बातचीत की। लेकिन डॉ. भोलानाथ तिवारी ने तत्कालीन भाषा को पश्चिमोत्तरी मध्य देशी तथा पूर्वी नाम से अभिहित किया है। परन्तु डॉ. रामविलास शर्मा आदि कुछ विद्वान्, प्राकृत को जनसाधारण की लोक-भाषा न मानकर उसे एक कृत्रिम साहित्यिक भाषा स्वीकार करते हैं। उनका मत है कि प्राकृत ने संस्कृत शब्दों को हठात् विकृत करने का नियम हीन प्रयत्न किया। डॉ. श्यामसुन्दर दास का मत है-वेदकालीन कथित भाषा से ही संस्कृत उत्पन्न हुई और अनार्यों के सम्पर्क का सहारा पाकर अन्य प्रान्तीय बोलियाँ विकसित हुईं। संस्कृत ने केवल चुने हुए प्रचुर प्रयुक्त, व्यवस्थित, व्यापक शब्दों से ही अपना भण्डार भरा, पर औरों ने वैदिक भाषा की प्रकृति स्वच्छान्दता को भरपेट अपनाया। यही उनके प्राकृत कहलाने का कारण है।” 
हिन्दी का निर्माण-काल

संस्कृतकालीन आधारभूत बोलचाल की भाषा परिवर्तित होते-होते 500 ई.पू.के बाद तक काफ़ी बदल गई,जिसे ‘पाली’ कहा गया। महात्मा बुद्ध के समय में पाली लोक भाषा थी और उन्होंने पाली के द्वारा ही अपने उपदेशों का प्रचार-प्रसार किया। संभवत: यह भाषा ईसा की प्रथम ईसवी तक रही। पहली ईसवी तक आते-आते पालि भाषा और परिवर्तित हुई,तब इसे ‘प्राकृत’ की संज्ञा दी गई। इसका काल पहली ई.से 500 ई.तक है। पाली की विभाषाओं के रूप में प्राकृत भाषाएं- पश्चिमी,पूर्वी ,पश्चिमोत्तरी तथा मध्य देशी ,अब साहित्यिक भाषाओं के रूप में स्वीकृत हो चुकी थी,जिन्हें मागधी,शौरसेनी,महाराष्ट्री,पैशाची,ब्राचड तथा अर्धमागधी भी कहा जा सकता है। आगे चलकर,प्राकृत भाषाओं के क्षेत्रीय रूपों से अपभ्रंश भाषाएं प्रतिष्ठित हुई। इनका समय 500 ई.से 1000 ई.तक माना जाता है। अपभ्रंश भाषा साहित्य के मुख्यत: दो रूप मिलते है – पश्चिमी और पूर्वी । अनुमानत: 1000 ई.के आसपास अपभ्रंश के विभिन्न क्षेत्रीय रूपों से आधुनिक आर्य भाषाओं का जन्म हुआ। अपभ्रंश से ही हिन्दी भाषा का जन्म हुआ। आधुनिक आर्य भाषाओं में,जिनमे हिन्दी भी है, का जन्म 1000 ई.के आसपास ही हुआ था,किंतु उसमे साहित्य रचना का कार्य 1150 या इसके बाद आरंभ हुआ।
हिन्दी भाषा के कालखंड

आदिकाल – (1000-1500) अपने प्रारंभिक दौर में हिंदी सभी बातों में अपभ्रंश के बहुत निकट थी इसी अपभ्रंश से हिंदी का जन्म हुआ है। आदि अपभ्रंश में अ, आ, ई, उ, उ ऊ, ऐ, औ केवल यही आठ स्वर थे।ऋ ई, औ, स्वर इसी अवधि में हिंदी में जुड़े । प्रारंभिक, 1000 से 1100 ईसवी के आस-पास तक हिंदी अपभ्रंश के समीप ही थी। इसका व्याकरण भी अपभ्रंश के सामान काम कर रहा था। धीरे-धीरे परिवर्तन होते हुए और 1500 ईसवी आते-आते हिंदी स्वतंत्र रूप से खड़ी हुई। 1460 के आस-पास देश भाषा में साहित्य सर्जन प्रारंभ हो चुका हो चुका था। इस अवधि में दोहा, चौपाई ,छप्पय दोहा, गाथा आदि छंदों में रचनाएं हुई है। इस समय के प्रमुख रचनाकार गोरखनाथ, विद्यापति, नरपति नालह, चंदवरदाई, कबीर आदि है। मध्यकाल –(1500-1800 तक) इस अवधि में हिंदी में बहुत परिवर्तन हुए। देश पर मुगलों का शासन होने के कारन उनकी भाषा का प्रभाव हिंदी पर पड़ा। परिणाम यह हुआ की फारसी के लगभग 3500 शब्द, अरबी के 2500 शब्द, पश्तों से 50 शब्द, तुर्की के 125 शब्द हिंदी की शब्दावली में शामिल हो गए। हिंदी भाषा में पुर्तगाली, स्पेनी, फ्रांसीसी और अंग्रेजी के शब्दों का समावेश हिंदी में हुआ। मुगलों के आधिपत्य का प्रभाव भाषा पर दिखाई देता है। 

फारसी से स्वीकार क, ख, ग, ज, फ ध्वनियों का प्रचलन हिंदी में समाप्त हुआ। अपवादस्वरूप कहीं-कहीं ज और फ ध्वनि शेष बची। क, ख, ग ध्वनियां क, ख, ग में बदल गई। इस पूरे कालखंड को 1800 से 1850 तक और फिर 1850 से 1900 तक तथा 1900 का 1910 तक और 1950 से 2000 तक विभाजित किया जा सकता है। संवत 1830 में जन्मे मुंशी सदासुख लाल नियाज ने हिंदी खड़ी बोली को प्रयोग में लिया। खड़ी बोली उस समय भी अस्तित्व में थी। 

आज हिंदी में सभी भाषाओ का समावेश पाया जाता है, हिंदी का उपयोग शने शने बढ़ रहा है पर और अधिक ध्यान देने की आव्यशकता है

यूनाइटेड नेशन्स (UN) ने विश्व में 6 भाषाओ को अधिकृत किया है जो अरेबिक, चाइनीस, अग्रेजी, फ्रेंच, रसियन और स्पेनिश है जिसमे हिंदी को शामिल करने के लिए 193 में से 129 वोट की आवश्यकता है। यदि भारत United Nations Security Council (UNSC) में भारत का नाम शामिल हो जाता है तो हिंदी भाषा को यु एन की अधिकृत भाषाओ में जोड़ना सरल हो जायेगा। 2003 में एक भारत के विदेश मंत्रालय में कमेटी गठित की थी जिसको अभी श्रीमति सुषमा स्वराज भी प्रयासरत है।

आओ हम अपनी भाषा पर गर्व करे। 

जय हिंदी

ॐ ॐ ॐ

डा विजय मिश्र 

जयपुर  
कई किताबो और google के लेखो के संदर्भ से

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