महामारी के दौरान राज्य में मातृ-शिशु मृत्यु दर में बढ़ोतरी के संबंध में एनएचआरसी ने राज्य को पत्र लिखकर कार्रवाई रिपोर्ट मांगी थी।राज्य ने रिपोर्ट में कहा कि इसका कारण चिकित्सीय देखभाल का अभाव था। माताओं ने संक्रमण के डर से स्वास्थ्य केंद्रों में भर्ती होने और कोविड टेस्ट कराने से इनकार कर दिया था। जिस समय ये मौतें हुईं, उस समय कोविड संक्रमित और कोविड मुक्त मरीजों को अलग-अलग रखना जरूरी था।
महामारी को फैलने से रोकने के लिए खासकर अस्पतालों के वार्ड में जांच की जा रही थी। महिलाओं ने स्वास्थ्य केंद्र जाने से परहेज किया तो एएनएम और आशा कार्यकर्ताओं ने घर जाकर उनके स्वास्थ्य पर निगरानी रखी और डिलीवरी के समय अस्पताल में भर्ती होने का अनुरोध दिया।
इस दौरान मौतों की बड़ी संख्या को देखते हुए राज्य सरकार ने बचाव अभियान शुरू किया। सभी गर्भवती महिलाओं के पंजीकरण के लिए मोबाइल एप्लीकेशन का इस्तेमाल किया गया।
राज्य प्रशासन के मुताबिक, कोविड के अलावा सामाजिक-आर्थिक और लैंगिक भेदभाव भी महिलाओं व नवजात की मौत की वजह बना। ज्यादा जोखिम वाली सभी गर्भवती महिलाओं को चिह्नित किया गया। उनमें से किसी को भी घर पर प्रसव की इजाजत नहीं दी गई। डिलीवरी से कम से कम दो सप्ताह पहले उन्हें अस्पताल में भर्ती होने को कहा गया।