सफलता की बुलंदी छूने वाले नीरज कितने जमीन से जुड़े हैं ये उन्होंने वतन लौटते ही दिखा दिया। अशोक होटल में सम्मान समारोह के पहले उन्होंने अपने माता-पिता के पैर छू कर भरपूर आशीर्वाद लिया। उनके अगले कदम ने तो मानों सबकी आंखें नम कर दी। नीरज ने अपना स्वर्ण पदक उतार कर अपनी मां के गले में पहना दिया। हर मां ऐसा बेटा चाहेगी। धन्य होगी। मां ने तो संकोच से पदक उतारकर बेटे को लौटा दिया। फिर नीरज ने ये पदक अपने पिता के गले में पहना दिया। पिता भी अत्यंत भावुक हो गए। पिता ने पदक उतारा नहीं, बल्कि लंबे समय तक पहने रहे। मानो इस लम्हे को भरपूर जी लेना चाहते हों। इन भावुक क्षणों का जो भी साक्षी बना वो उसी भाव-प्रवाह में शामिल हो गया।
नीरज को अपनी माटी और अपने संस्कारों से जुड़ाव
नीरज के परिवार को जितना देखो उतना ही सुकून मिलता है। इनकी सादगी इनके व्यवहार से झलकती है। एकदम सीधे और सच्चे। कोई लाग-लपेट या दिखावा नहीं। और यही शायद नीरज की सबसे बड़ी ताकत है!! अपनी माटी और अपने संस्कारों से जुड़ाव। ये क्षण अनमोल हैं। खिलाड़ियों को पदक मिलने पर जो पैसे मिल रहे हैं वो अपनी जगह, पर खिलाड़ी जीता इसी लम्हे के लिए है जो अमूल्य है।