टर्की और सनातन (आर्य और अनार्य) – डॉ विजय मिश्रा

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कल के समाचार टर्की में सत्तापलट का ड्रामा देखकर कुछ लिखने का मन हुआ। टर्की कभी सेकुलर हुआ करता था (केवल भृम) था पर आज केवल इस्लामी है जैसे पाकिस्तान! इस्लामी देशों में जनता के चुने शासन (लोकतंत्र, जनतंत्र) का कभी कोई उपयोगिता नही रही। मुर्धन्ध धर्म में केवल शरीयत के हिसाब से देश को निर्देशित करने की और शरीयत की मान्यता दिलानी रहती है।

साथ ही की आर्य ईरान, इराक और टर्की से आये थे! बड़े रूप में क्रंदन किया जाता है। इसी तर्क पर…

राजा विक्रमादित्य का राज्य पूर्व में चीन और पश्चिम में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, इराक के बाद टर्की तक फैला हुआ था। इतिहासकारों का कहना है कि पूर्व के कुछ देश भी राजा विक्रमादित्य के राज्य का हिस्सा थे और उक्त सारे देशों में सनातन धर्म का ही चलन था।

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अरब का नाम अरबिस्तान था जो संस्कृत का शव्द अरव् अर्थात् घोड़ो से बना है। आज भी घोड़ो में अरवी घोड़ो का प्रथम स्थान है। राजा विक्रमादित्य के बाद इस्लाम का जन्म हुआ और कुछ इस्लाम की प्रारंभिक पुस्तको में राजा विक्रमादित्य के विषय में बहुत कुछ लिखा गया है। टर्की से हमारा बहुत पुराना और नजदीकी रिश्ता रहा है। टर्की और ईरान और अफगानिस्तान में ब्राह्मणों की बहुत बड़ी संख्या रहती थी। ब्राह्मणों को आर्य कहा जाता था अर्थ है ‘श्रेष्ठ’।

इस्लाम के जन्म के बाद स्तिथियाँ बदलने लगी। इस्लाम के सभी नियम सनातन के विपरीत है जैसे उल्टा हाथ धोना (वजू), उल्टा लिखना आदि आदि। चूँकि इस्लाम धर्म बना ही सनातन के विरुद्ध था क्यों की इस्लाम को क्रिश्चियन धर्म से कोई समस्या नही थी, क्यों? (इसका उत्तर भी आगे है) और इसमें (इस्लाम) निर्दयता की भरमार थी और सनातन सर्वधर्म भाव रखता है।

टर्की में भी अन्य स्थानों की तरह ईरान, इराक, अफगानिस्तान अदि में आर्य अनार्य दोनों रहते थे। आर्य शिक्षित और उत्तम थे जिन्होंने इस्लाम अपनाने से मना कर दिया पर अनार्य ने ईरान, इराक, अफगानिस्तान आदि में इस्लाम अपना लिया। क्या कभी सोचा है जिन्होंने इस्लाम अपनाया वो पहले किसी ना किसी धर्म से ही जुड़े होंगे?

इतिहासकार मानते है कि इस्लाम से पहले अर-नार संस्कृति थी जिनके नाम माईन, सबाई (!), हटरमौत, असबाव, कतबान आदि थे। अरब के मेसोटोपमिया संस्कृति को छेड़ा जाये तो चंद्रमा को देवता मानने वाले कुछ प्रमाण मिले है। अभी तक के देखे गए धर्मो में सनातन ही सूर्य, चंद्र मंगल आदि की पूजक माने जाते है।

अब प्रश्न यह की आर्य बाहर से आये? बाहर का अर्थ? जब राजा विक्रमादित्य का राज्य ही टर्की से भी सुदूर था तो बाहर का अर्थ क्या है? आज जितने भी इस्लामी है वास्तव् में सनातनी है जिनको नियम से रहने में आपत्ति थी और अनार्य थे जिनको इस्लाम धर्म में औरतों, सेक्स, मारकाट में अधिक रुचि थी। यही रावण के रक्ष धर्म में भी देखा गया था। सफ़ेद है तो काला है, दिन है तो रात है, दुःख है तो सुख है! आप इसको पलट कर भी देख सकते है। सनातन है तो इस्लाम है!!!

 

आपको सुन कर आश्चर्य भी होगा की टर्की में इस्लाम से पहले सबसे बड़ा पुस्तकालय था जिसको इस्लाम जन्म के बाद जला दिया गया जैसे भारत में तक्षशिला के साथ हुआ। चूँकि आर्य कम और अनार्य अधिक थे इसी कारण आर्य सिमटते सिमटते कम होते गए। जो आज भी सिमटते जा रहे है। आज की स्तिथि देखे तो इस्लाम के जनक के तरह ही भारत में ओवैसी जैसे कई लोग काम कर रहे है, जो अनार्य को सहयोग करने के बहाने इस्लामीकरण को बढ़ावा दे रहे है। पर दुःख है कि कुछ आर्य भी अनार्य की भांति ही व्यवहार करने लगे है। आमोद प्रमोद में व्यस्त, स्वार्थी, और सनातन से दूर!!

‘पर सनातन सिमट सकता है, अंत संभव नही।’

कोई सनातनी फिर आयेगा और कहेगा……..
मेरे विश्व के भाइयो और बहनों….
सत्य मरता नही!!!

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