कश्मीरी पंडितों के पलायन पर बनी बॉलीवुड फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’, रिलीज होते ही चर्चा में आ गई है। राजनीतिक दल, सामाजिक संगठन और पीड़ित परिवार अपना पक्ष रख रहे हैं। कई लोग आरोप-प्रत्यारोप के लहजे में अपनी बात कह रहे हैं। फिल्म लगातार बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन कर रही है। फिल्म रिलीज होने के बाद कई राज्यों में इसे टैक्स फ्री कर दिया गया है। ‘द कश्मीर फाइल्स’ का एक राजनीतिक मायना भी है। जम्मू कश्मीर के राजनीतिक जानकार कैप्टन अनिल गौर (सेवानिवृत्त) का कहना है कि इस फिल्म में कुछ भी गलत नहीं है। कश्मीरी पंडितों के साथ जो जुल्म हुए हैं, उनकी सच्ची कहानी है। हां, वहां विधानसभा चुनाव के दौरान इसका असर देखने को मिल सकता है। मौजूदा हालात में दो तीन दलों को यह फिल्म राजनीतिक चोट पहुंचा सकती है। जम्मू क्षेत्र में इस मूवी पर लोगों का जो भाव दिखाई पड़ रहा है, उसका फायदा भाजपा को मिल सकता है। पनून कश्मीर के कन्वीनर, डॉ. अग्निशेखर कहते हैं कि कांग्रेस सरकार के समय में कश्मीरी पंडितों का विस्थापन नहीं हुआ। जिस वक्त ये घटनाएं हुई, उस वक्त देश में वीपी सिंह की सरकार थी, जिसका समर्थन भाजपा कर रही थी। भाजपा ने तब कश्मीरी पंडितों के विस्थापन को लेकर तत्कालीन वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस नहीं लिया।