यूक्रेन में तिरंगे ने बचाई जान

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यूक्रेन के खारकीव से पिसोचिन जाते समय हमारे सामने कुछ दूरी पर एक मिसाइल गिरी और जोरदार धमाके के साथ फट गई थी। हालात कुछ ऐसे थे कि दहशत से कलेजा कांप उठा था। सभी लोग जमीन पर लेट गए थे। करीब दस मिनट तक जमीन से उठने की हिम्मत नहीं हुई। 

यूक्रेन से लौटे रामपुर के मुदित राजपूत ने वहां के हालात और अपनी घर वापसी के संघर्ष को बयां करते हुए अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि हम 25 किलोमीटर तक पैदल चले थे। हाथ में तिरंगा था। किसी ने न तो रोका और न ही टोका। वह भी तब जब चारों तरफ बमबारी हो रही थी।

ज्वालानगर रफत कालोनी निवासी शिक्षक प्रेम सिंह के पुत्र यूक्रेन की खारकीव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस कर रहे हैं। यह उनका पहला साल है। वह मंगलवार को सुबह रामपुर पहुंचे तो परिजनों ने फूल मालाएं पहनाकर स्वागत किया। उन्होंने वहां के हालातों के बारे में बताया। उन्होंने कहा, चारों ओर तबाही के निशान हैं।

इमारतें मलबे में तब्दील हो गई हैं। कहा कि रूस ने जैसे ही यूक्रेन पर हमला किया, तो हम सभी लोग हॉस्टल की बिल्डिंग के नीचे बने बंकर में चले गए। बंकर से बाहर न निकलने की चेतावनी जारी की गई थी। चार मार्च तक बंकर में ही रहे। इसके बाद भारतीय दूतावास ने एडवाइजरी जारी कर दी, जिसके बाद चार मार्च को बंकर से निकले और स्वदेश लौटने के लिए रेलवे स्टेशन गए, लेकिन कोई ट्रेन नहीं मिली। दूतावास के संदेश के बाद वहां से निकले और 25 किलोमीटर दूर पिसोचिन में बताए गए स्थान पर पहुंच गए।एक दिन वहां रुके और फिर बस से लवीव पहुंचे। यहां से पोलैंड बॉर्डर के लिए रवाना हुए। उन्होंने बताया कि उनका पूरा वक्त चॉकलेट और बिस्कुट खाकर बिताया। माइनस में तापमान था, तो दिक्कत और अधिक हो रही थी। उन्होंने बताया कि बॉर्डर पार करने के बाद कुछ राहत मिली और भारतीय वायुसेना के विमान से गाजियाबाद स्थित हिंडन एयरबेस पहुंचे, यहां से रामपुर आए।

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