गलत उम्मीद लगाए हो रियो ओलंपिक में। 

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रियो ओलंपिक मेँ अभी तक “बोहनी” होना भी बाकि है।कोई कहता है,खिलाड़ियोँ के तैयारी की कमी है तो कोई कहता है संसाधन की कमी है।बुद्धिजीवी नामक एक निष्पक्ष वर्ग तो ये सब जवाहर लाल जी की कश्मीर नीति और अटल बिहारी जी की लाहौर यात्रा,मनमोहन जी के दस साल कम बोलने और मोदी जी के दो साल से चौबीसोँ घंटे लगातार बोलने को इस दुगर्ति का सबसे बड़ा कारण ठहरा रहा है।पर कहानी और भी है।…. देश के जिन जिन घरोँ मेँ टीवी खोल पदक की आस लगाये लोग बैठे हैँ उनके घर का हर बच्चा बगले वाले कमरे मेँ ध्यान से पढ़ने बैठा होगा कि मम्मा और पप्पा को 99 प्रतिशत अंक ला के दिखा भव सागर से पार ले जा तार सके और डीयू के एडमिशन ओलंपिक मेँ पदक पक्का करने का सपना पूरा कर सके।ऐसे भारतवासी किस मूँह से रियो की तरफ मुँह कर पदक देखने बैठे हैँ,आश्चर्य होता है।ई मुँहवा घुमा काहे नहीँ लेते इन फालतु की चीजोँ से?आपका नाम तो आपके बच्चे करेँगे न जिनका सारा जीवन आपके सपने का बोझ और किताब का बोझ ढोने मेँ चला जाता है,इनको लगाया है आपने अपने प्राईवेट भरोत्तोलन मेँ तो फिर रियो मेँ क्या खोज रहे हैँ।आपने अपने बच्चोँ को दिया है लक्ष्य”बेटा IIT क्रेक करना है”। आपने हर सुविधा दी है कि कोई कमी ना हो बेटे को।बेटा लग गया है आँख मेँ 8सेमी मोटा चश्मा लगाये आपके दिये लक्ष्य पर निशाना साधने मेँ, और आप एक सुविधाविहिन ऑटो ड्राईवर की बेटी दीपीका कुमारी से उम्मीद पाल बैठे हैँ निशानेबाजी मे पदक ला दे आपके गौरव के लिए,आप अपने लाल से कहिए न एक बार जिसकी खातिर IIT ही ओलंपिक है।आपका लाल 60 लाख की ऑडी से कॉलेज कैँपस आता है,अँखियो से गोली मारता है,शर्त लगा के मारता है और जीतता है,और आप लगे हैँ बेचारे जीतू राई से पदक पाने मेँ,जिसके लिए निशाना साधना पूरे जीवन की साधना के बाद जिँदगी साधने जैसा है।वो ऑडी वाला हिप हॉप शूटर थोड़े है महराज। आपका लड़का टाईम से उठ सुबह की जूस पी जिम जाता है,नाईक का हाफ पैँट और रिबॉक का जूता पहिने मार कसरत किये डोगा जैसा बाँह बनाये घर आता है,मँहगा पाउडर घोल के पीता है,फल खाता है।गठीला बदन गढ़ता है और देह से एकदम चिपका हुआ चमचम आडिडास का टी शर्ट पहनता है जिससे कपड़े पहने के बावजूद देह का फूला हुआ नस बाहर दिखता है और पड़ोस का मरमराया सा बिहारी उससे खौफ खाता है,ऐसे मेँ आप नरसिँह यादव जैसे लिट्टी चोखा खाये देहाती बनारसी से पदक माँगते हैँ भई,आपका लाल क्या खाली इंडिया गेट पर बाईक हिलायेगा लहरायेगा?उसके गठीले सुविधा संपन्न बाँह बस उसके सपनोँ की रानी के झुला झुलने खातिर हैँ?आपका सुविधा भोगी सपूत  डिस्को जाता है,और कहीँ पीने खाने झुमने मेँ किसी से हुज्जत हो गया तो एतना शानदार फाईट करता है,मार के नाक तोड़ देता है करोल बाग वाले लौंडो का और आप पदक मैरीकॉम या विकास कृष्णन जैसे पिछड़ोँ से माँगते हैँ जिनके पूर्वज से लेकर आज तक किसी ने डिस्को ना देखा है।नित रात आपको डिस्को से पदक ला देने वाला सपूत,इससे माँगिये ना बॉक्सिँग का पदक।आपकी लाडली करीना कपूर जैसा बनना चाहती है,डांस सिखती है,कमर मेँ लचक ऐसी कि पहले आईटम साँग पे फिल्म फेयर अवार्ड मिल जाये पर आपको स्वर्ण पदक की उम्मीद दीपा कर्मकार के लचक से है।एक ऐसी  बेटी से जिसे उसके संघर्ष ने तोड़ तोड़ लचीला बनाया है और उसकी जीवटता ने उसे संतुलन दिया है,वो सरोज खान के क्लास की लाडली टैलेँट नहीँ,देश की जिमनास्ट है जिस अकेले पर सवा अरब आबादी के  गौरव का बोझ डाल रखा है हमने।आपकी लाडली पर तो डांस इंडिया डांस का प्रेशर होगा,कौन कूदे फिर ओलंपिक मेँ।सो जान लिजिए,”सवा सौ करोड़ की आबादी वाला देश और पदक एक नहीँ” ये बोल अकबकबाईये मत उन योद्धाओँ को जो ओलंपिक जैसे महामंच पर दुनिया के सबसे छँटे प्रतिभाओँ से टकरा रहे हैँ,सब अर्हता लेके गये हैँ,किसी को अनुकंपा पे नही मिला है प्रवेश।सोचना तो आपको है कि,जिस घर मेँ पैसा है,सुविधा है,साधन है उस घर के बच्चे IAS,IPS,IIT,DOCTER,IIM,DANCER,HERO,POLITICIAN बनने मेँ लगे हैँ और जिनके पास सुविधा नहीँ,साधन नहीँ उनके बच्चे आपके गौरव का बोझ लिये,देश का मान लिए दुनिया के मंच पर उठा पटक लड़ रहे हैँ,ऐसे मेँ नमन करिये उनको।देखना तो ये है कि ओलंपिक पर आस लगा अपनी प्रतिष्ठा देखने वाले इस देश मेँ किस दिन IAS का बेटा कुश्ती खेलेगा,IIT का लड़का तैराक बनेगा और डॉक्टर अपने बच्ची को बॉक्सर बनाने की कुव्बत दिखायेगा। जय हो

अज्ञात

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