कई बार कुछ लोग हमें अपने फ़र्ज़ के लिए कुछ सीख दे जाते हैं ! ऐसा ही एक वाकया बसपा सुप्रीमो मायावती जी ने भी सिखाया ! पढ़े कैसे और क्या हुआ !
स्थान लखनऊ ,रविवार 10 जुलाई ,समय -12बजकर 32 मिनट -बसपा सुप्रीमो मायावती हाल में प्रवेश करती है ,पार्टी के पदाधिकारियों ,जोनल कोआर्डीनेटरों की बैठक हैं। बैठक की कारवाई शुरू होती हैं। सबकी निगाहें मायावती की ओर हैं जिन्हें वो बहिन जी कहकर संबोधित करते रहे हैं।विरोधियों की निगाह में वो अक्खड़ है कठोर है यदाकदा उन पर संवेदनहीनता के आरोप भी लगते रहते हैं । सब मायावती के चेहरे पर उदासी ढूँढने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन असफल हो रहे हैं मायावती के भाई टीटू उर्फ़ सुभाष की लम्बी बीमारी के बाद नोएडा के मेट्रो अस्पताल में महज 24 घंटे पहले मौत हुई है,उनका शव अभी भी दिल्ली में उनके नारायणा स्थित घर पर रखा हुआ है।
मायावती बोलना शुरू करती हैं “बसपा को नोट छापने वाली मशीन बना दिए जाने का भाजपा का आरोप घोर जातिवादी व ईर्ष्यापूर्ण मानसिकता का द्योतक है। वो हम हैं जिन्होंने बहुजन समाज को ‘लेने वाले’ से ‘देने वाला’ समाज बनाया। पार्टी अपने ही समाज के थोड़े-थोड़े आर्थिक सहयोग से अपने मानवतावादी अभियान को लगातार आगे बढ़ा रही है, जबकि खासकर भाजपा, कांग्रेस और उनकी सरकारें बड़े-बड़े पूंजीपतियों से धन लेने के कारण उनकी गुलामी करती हैं।सबकी निगाहें अब भी मायावती के चेहरे पर शिकन और उदासी को ढूंढ रही है। मायावती आगे कहती है “सपा सरकार का भी विकास का दावा खोखला है।प्रदेश में हो रहा निर्माण कार्य घटिया हैं हम आये तो दोषियों को सजा देंगे” |मायावती एक एक करके कोआर्डिनेटरों से उनके क्षेत्र का हाल पूछती जा रही है और उन्हें जरुरी दिशा निर्देश दे रही है
मायावती हर पदाधिकारी और को-आर्डिनेटर से उनके क्षेत्र का हाल पूछ रहीं है पूर्वी उत्तर प्रदेश के पदाधिकारियों को क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा जनसंपर्क करने के आदेश दिए जा रहे हैं। बनारस और आजमगढ़ पर उनकी ख़ास निगाह है वो बातचीत के दौरान पदाधिकारियों को क्षेत्र में काम करने को लेकर चेता रहीं हैं। वो कहती हैं चुनाव की तैयारियों में जुटे रहने के साथ साथ समाज का काम भी जरुरी है।चार घंटे बीत चुके हैं,अचानक बातों के बीच मायावती खामोश हो जाती हैं पहले छत की ओर फिर जमीन की ओर देखती हैं फिर खामोशी टूटती है “आप जानते हैं कि मेरे छोटे भाई टीटू की मौत हो गई है,उसकी लाश घर पर रखी है,इसकी जानकारी मुझे मिल गई थी, लेकिन मैंने आप सभी को बैठक के लिए बुला रखा था और मेरे लिए पार्टी और मिशन पहले है।वो आगे कहती हैं मेरे आदर्श बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर के बेटे की जब मौत हुई थी तो उन्हें पूना पैक्ट के लिए जाना था और वह पूना पैक्ट में गए। मेरे सामने भी चुनौती थी, लेकिन मेरा मिशन और बाबासाहेब का सपना मेरे लिए ज्यादा अहम था।मैं जा रही हूँ अब शायद और ज्यादा देर खुद को रोक नहीं पाउंगी ,कार्यकर्ताओं की आँख भरभराई हुई है मायावती निकल चुकी हैं।
सच है ऐसे बलिदान को भूला नहीं जा सकता !
(आवेश तिवारी द्वारा )
Comments