पथरीली डगर पर हिमाचल प्रदेश के विकास का सफर

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हिमाचल प्रदेश की आर्थिक हालत पर नजर डालें तो पर्यटन, कृषि, सीमेंट सहित उद्योग, बिजली संयंत्र के अलावा करीब पांच हजार करोड़ सालाना का सेब कारोबार ही सरकार की आमदनी के मुख्य स्रोत हैं। हालात यह हैं कि अपना काम चलाने के लिए हर साल सरकार को हजारों करोड़ रुपये का कर्ज लेना पड़ता है। मौजूदा समय में 100 रुपये सरकार की आमदनी मानी जाए तो उसमें से करीब 16.64 रुपये ऋण-ब्याज की अदायगी, 25.31 रुपये वेतन, 14.11 रुपये पेंशन पर खर्च हो जाते हैं। यानी कुल 56.06 रुपये ऋण-ब्याज अदायगी, वेतन और पेंशन पर चले जाते हैं। आमदनी से ज्यादा खर्च होने पर साल दर साल सरकार पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है।वर्तमान सरकार ने इन्वेस्टर मीट के जरिये 92 हजार करोड़ रुपये के लिए 603 एमओयू साइन तो किए, लेकिन यह सभी धरातल पर कब दिखेंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता। प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय अब 1,95,255 रुपये है जबकि वर्ष 2011-12 में यह 87,721 रुपये थी। सकल घरेलू उत्पाद 1,65,472 रुपये है जबकि वर्ष 2011-12 में यह 72,720 था। 

सकल घरेलू उत्पाद में से कृषि, बागवानी आदि (प्राथमिक क्षेत्र) से 14.58 फीसदी, उद्योग, निर्माण, विद्युत, गैस व जलापूर्ति आदि (गौण क्षेत्र) से 41.94 फीसदी और पर्यटन, परिवहन, आवासीय आदि (सेवा क्षेत्र) से 43.48 फीसदी आता है। प्रदेश की आर्थिकी में पर्यटन उद्योग का विशेष योगदान है। हिमाचल प्रदेश में सकल घरेलू उत्पाद का 7 फीसदी पर्यटन से ही आता है। यह प्रदेश के रोजगार व स्वरोजगार की रीढ़ बना हुआ है।पिछले 50 वर्षों में सत्तासीन सरकारों ने प्रदेश में खेती व बागवानी को बढ़ावा दिया है। आज प्रदेश में कुल फसल 36,12,000 मीट्रिक टन और फल उत्पादन 8,45,422 मीट्रिक टन से अधिक हो रहा है। वर्तमान में 5000 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष का योगदान देकर सेब हिमाचल की मुख्य नकदी फसल बन गया है।पिछले दो साल के बजट पर नजर दौड़ाई जाए तो वर्ष 2021-22 का कुल बजट 50192 करोड़ रखा गया। इसमें राजकोषीय घाटा 7789 करोड़ रुपये व राजस्व घाटा 1463 रुपये का अनुमान है। हालांकि, यह राजस्व घाटा कोरोनाकाल से लॉकडाउन या बाजार प्रभावित रहने के कारण माना जा रहा है।

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