कोरोना काल में एक समय वह भी आया, जब परिवार ने संक्रमित मरीज का शव स्वीकार करने से मना कर दिया या फिर परिवार के अन्य लोगों के क्वारंटीन होने से शव को दफनाने वाला कोई नहीं था। लोग भी डर के मारे जनाजे में नहीं पहुंचते थे। इस विकट घड़ी में श्रीनगर के एंबुलेंस चालक जमील अहमद डिगू मानवता की मिसाल बने। उन्होंने न सिर्फ शवों को कब्रिस्तान तक पहुंचाया बल्कि दफन करने के साथ नमाज-ए-जनाजा भी पढ़ा, जबकि उनकी ड्यूटी सिर्फ शव को कब्रिस्तान पहुंचाने की ही थी। पिछले साल करीब चार से पांच माह तक वह अपनी जान की परवाह किए बिना सेवा में जुटे रहे। श्रीनगर जिले में अभी तक कोरोना से जितनी भी मौतें हुई हैं, सभी को अस्पताल से कब्रिस्तान ले जाने और दफनाने का काम जमील ने ही किया है।
स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत जमील कहते हैं, जब श्रीनगर में पहली मौत कोविड से हुई तो उस समय हालात ऐसे थे कि सब डरते थे। रैनावारी की 73 वर्षीय बुजुर्ग महिला को दफनाने के लिए हम केवल तीन लोग सामने आए थे। दो मोहल्ले वाले और तीसरा मैं, क्योंकि महिला के सभी परिवार वालों को क्वारंटीन कर दिया गया था। डर ऐेसा कि दफनाने के लिए मोहल्ले वाले भी नहीं पहुंचे।
जमील ने बताया कि शुरू में जब उन्होंने शवों को लेकर जाना शुरू किया तो उनके घर वालों ने भी इस पर एतराज जताया, लेकिन उन्होंने मानवता की सेवा के लिए अपना प्रयास जारी रखा।