जानें कैसे इस ब्राम्हण चेहरे ने बदला यूपी की राजनीती का समीकरण

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भारतीय राजनीति में जिस तरह से जातिगत समीकरण हावी हो गया है,उस से कोई भी राज्य अथवा दल अछूता नहीं रह गया है ! उत्तर प्रदेश भी इससे पृथक नहीं है ! इस प्रदेश में दशको से राजनीति में जातियों का समीकरण हावी रहा है !

उत्तर प्रदेश सियासत का एक ऐसा रणक्षेत्र है, जहां आंदोलनों के साथ नए सियासी समीकरण बनने और वक्त के साथ उनके सिर के बल खड़े होने में खास दिक्कत पेश नहीं आती. सूबे की राजनीति में 40 साल तक ब्राह्मणों का दबदबा कायम रहना, 1990 के दशक में उनका हाशिये पर जाना और इस सदी के दूसरे दशक के उत्तरार्द्ध में एक बार फिर से किंग मेकर बनकर उभरना उत्तर प्रदेश की इसी जाति आधारित राजनीति के दिलचस्प अध्याय हैं. बंबइया फिल्मों की तरह रोमांच और क्लाइमेक्स से भरी इस पटकथा का असली लेखक थे -सूबे के 62 जिलों में 8 फीसदी से ज्यादा और इनमें से 31 जिलों में 12 फीसदी से ज्यादा ब्राह्मण वोट. इसी की खातिर नेता पंडित जी को हाथ दिखाएं न दिखाएं लेकिन सिर पर ब्राह्मण का हाथ जरूर चाहते हैं.

ब्राह्मणों के आशीर्वाद के लिए पार्टियां अपनी-अपनी तरफ से ऐसे ब्राह्मण चेहरे पेश करने में लगी हैं, जो पंडितों को एकमुश्त न सही तो कम-से-कम फुटकर तौर पर ही अपनी ओर खींच सकें.  अब  प्रदेश के इतिहास पर नजर डालें तो यहां अब तक बने 19 मुख्यमंत्रियों में से सबसे अधिक 6 मुख्यमंत्री ब्राह्मण जाति से ही आए और ये सभी कांग्रेस के थे. इसके बाद 4 ठाकुर, 4 पिछड़े, 3 वैश्य, 1 कायस्थ और एक दलित मुख्यमंत्री बना. अगर कुल कार्यकाल पर नजर डालें तो 23 साल तक प्रदेश की कमान ब्राह्मण मुख्यमंत्रियों के हाथ में रही.

बसपा के शोशल इजिनारिंग के सूत्र  कहलाने वाले ब्राम्हण चेहरे ब्रजेश पाठक ने हाल में ही बसपा को त्याग कर भाजपा का दामन थामा है ! जिस प्रकार से समीकरण बने हैं उससे ये तो कयास लगाए ही जा सकते हैं की भाजपा को ब्राम्हणों को जोड़ने के लिए कोई न कोई तरीका तो अपनाना ही था ! और शायद ब्रजेश पाठक के रूप में इन्हें तुरुप का इक्का मिल गया है ! जहाँ एक और बसपा दलितों और मुसलमानों की हितैषी होने का दावा कर रही है वहीँ दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी बिखरती सी नज़र आ रही है ! इधर कांग्रेस मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप में शीला दीक्षित को पेश करना चाह रही है ! कांग्रेस भी इन्हें ब्राम्हण चेहरे के रूप में प्रेषित कर ब्राम्हण वोटो को लुभाने की पूरी कोशिश कर रही है ! हालाँकि यह अलग बात है की कांग्रेस द्वारा घोषित ब्राम्हण बहू अपने पूरे  जीवनकाल में अपने मायके की सेवा में ही लगी रही !

वहीँ भाजपा में शामिल हुए ब्रजेश पाठक का नाम एक ब्राम्हण चेहरे के तौर पर लिया जाता है ! ऐसे में इस बात से इनकार तो नहीं ही किया जा सकता की इस बार ब्राम्हणों को अनदेखा कर के सरकार बनाई जा सकती है ! ये वही ब्रजेश पाठक और ब्राम्हण हैं जिन्होंने बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी !

यह माना जाता है की बसपा में नेताओ को कहने करने की ज्यादा छूट नहीं मिलती उसके बावजूद बसपा के पूर्व सदस्य ब्रजेश पाठक ने अपने समर्थको एवं लोगो के बीच एक विशेष स्थान बनाया है ! रोचक बात तो यह है की इनके समर्थक इनके व्यक्तित्व के कारण ज्यादा इनसे जुड़े हैं ! इसका जीता जागता उदाहरण हाल में ही भाजपा से जुड़ने के बाद इनके लखनऊ में प्रथम आगमन पर हुआ जोरदार स्वागत है ! इस स्वागत समारोह में सभी धर्म जाती के लोग देखे गए थे ! अतः यह कहना गलत नहीं होगा की इनके कारण भाजपा मुख्यधारा में उत्तर प्रदेश में आई है ! अब देखना यह होगा की भाजपा ब्राम्हणों को किस तरह से अपने  साथ जोड़ कर चलती है ! कयास लगाये जा सकते हैं की इस बार के चुनाव ब्राम्हण वोटरों के आधार पर ही होंगे !

 

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