रूस और यूक्रेन द्विपक्षीय मामला है,

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रूस ने जंग का ऐलान कर दिया है और यूक्रेन को या तो अब  नाटो फौज़ बचा सकती है या ख़ुद रूस उसकी रक्षा कर सकता है। ठीक सौ बरस पहले सोवियत संघ अस्तित्व में आया था और तब से 1991 तक रूस तथा यूक्रेन संघीय ढांचे में दो अच्छे पड़ोसी प्रदेशों की तरह रहते रहे हैं। रूस और यूक्रेन को कभी जुड़वां देश माना जाता था। एक दूसरे का हमदम और दुख-सुख का साथी। लेकिन इन दिनों दोनों शत्रुवत व्यवहार कर रहे हैं।

सोवियत संघ बिखरा तो अलग हुए अनेक राज्य आपस में लड़ने लगे। जब कोई राज्य हारता तो वह रूस को अपनी पराजय का दोष देता। रूस की स्थिति विचित्र थी। वह दोनों पक्षों का साथ नहीं दे सकता था और लड़ने वाले दोनों देश रूस को अपनी पंचायत का सरपंच मानने को तैयार नहीं थे। भले ही रूस आकार और प्रभाव में उनसे बड़ा था ,लेकिन विघटित सोवियत संघ के वे देश यह भूलने के लिए तैयार नहीं थे कि कभी वे रूस की तरह समान अधिकारों वाले प्रदेश ही थे। इस तरह यह मामला कुछ कुछ ऐसा ही था, जो अतीत में कभी हिन्दुस्तान ,पाकिस्तान और बांग्लादेश का हुआ करता था।
 यह सच है कि भारत ने कभी अपने से अलग हुए देशों पर दोबारा क़ब्ज़ा नहीं करना चाहा और जो विवाद इन देशों के साथ हैं ,वे आपस में मिल बैठकर सुलझाने पर ज़ोर दिया है। लेकिन कल्पना करिए कि भविष्य में यदि पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाला कश्मीर और बलूचिस्तान फैसला करें कि वे हिंदुस्तान में मिलना चाहते हैं या फिर स्वतंत्र रहना चाहते हैं तो भारत को उन्हें क्यों समर्थन नहीं देना चाहिए?

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