किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में अब किसी मृत व्यक्ति की त्वचा छह महीने तक संभालकर रखी जा सकेगी। इसे गंभीर रूप से जले या फिर घायल व्यक्तियों में लगाया जा सकेगा। चिकित्सा विश्वविद्यालय के प्लास्टिक एंड रीकंस्ट्रक्टिव सर्जरी विभाग में स्थापित होने जा रहे स्किन बैंक के माध्यम से यह संभव हो सकेगा। इसके लिए मुंबई के इंस्टीट्यूट से तकनीकी मार्गदर्शन लिया जा रहा है। विभाग की टीम ने पिछले सप्ताह मुंबई स्थित संस्थान का भ्रमण भी किया है। अब स्किन बैंक स्थापित करने के लिए जरूरी उपकरण खरीद की तैयारी चल रही है। अगले छह महीने के भीतर इसे स्थापित कर इसके माध्यम से प्लास्टिक सर्जरी की शुरुआत की जाएगी।
केजीएमयू की कार्य परिषद ने प्लास्टिक एंड रीकंस्ट्रक्टिव सर्जरी विभाग में स्किन बैंक स्थापित करने की मंजूरी दी है। विभागाध्यक्ष डॉ. बृजेश मिश्रा के अनुसार संस्थान में काफी संख्या में ऐसे मरीज आते हैं जो अपने अंग दान करते हैं। मानव की त्वचा भी दान की जा सकती है, लेकिन अभी तक संस्थान में ऐसी सुविधा नहीं है जिससे कि त्वचा को सुरक्षित रखा जा सके। स्वाभाविक रूप से कटने या फिर सामान्य जलने पर त्वचा अपनी मरम्मत करने में सक्षम होती है, लेकिन गंभीर रूप से जलने या क्षतिग्रस्त होने पर ऐसा नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में त्वचा प्रत्यारोपण का सहारा लिया जाता है। मृत व्यक्ति कुछ मामलों को छोड़कर ज्यादातर में अपनी त्वचा दान कर सकता है।
मृत्यु के छह घंटे के भीतर निकाली जाती है त्वचा
दान में मिली त्वचा को निकालने में समय काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह त्वचा व्यक्ति की मृत्यु के छह घंटे के भीतर निकाली जा सकती है। विशेष मशीन के माध्यम से त्वचा को 0.3 मिलीमीटर की मोटाई के साथ जांघ, पैर और पीठ से एपिडर्मिस व डर्मिस के कुछ हिस्से को निकाला जाता है। चेहरे, हाथ, छाती या शरीर के ऊपरी हिस्से की त्वचा नहीं निकाली जाती है। त्वचा निकालने के लिए विशेष उपकरणों की जरूरत होती है।