पुराणों में एक नाम आता है “सदन कसाई” ; आज कल किसी गाँव – कस्बे में जाइये तो हिन्दू कसाई मिलता नहीं ..बड़ी मुस्किल से कहीं कोई हिन्दू कसाई दिखेगा |
मै तो कट्टर शकाहारी हूँ पर कई क्षत्रिय और कायस्थ मित्रों का लम्बा साथ रहा है ….जो किसी हिन्दू कसाई ( चिकवा …) की दुकान से ही झटका मांस लेकर खाते हैं |
आज कल के अति मार्डन – कूल ड्यूड परम सेकुलर युवा कहीं भी , किसी भी दुकान से मांस खा लेते हैं …बिरयानी यदि हैदरावादी हो तो कहने ही क्या ? इस वजह से पौराणिक “सदन कसाई” का वंसज धीरे – धीरे लुप्त होता चला गया ….. आज हिन्दू कसाई अपवाद स्वरुप ही मिलता है ….
फिर जो हिन्दू मांस खाते है वो क्या खा रहे हैं …झटका या हलाल ????
90 % हिन्दू जो मांस लेकर आते हैं वो हलाल होता है और यदि पका हुवा खा रहे हैं तो कोई भरोसा नहीं कि बकरे के साथ क्या – क्या और मिला हुवा है …..
अधिकांश संस्थानों के भोजनालय में जो मांस पकता है वह भी हलाल ही होता है …सेकुलरिज्म के नाम पर आप के साथ छल हो रहा ..यदि मेरी बात झूठ लग रही हो तो ध्यान से देखें आप का कोई मुस्लिम सहकर्मी यदि मांस खाता है तो वह सोलह आने हलाल ही होगा …..
हैदरावाद के बिश्वस्त मित्र ( नाम गोपनीय रखना चाहता हूँ ) ने सूचना दी है कि हैदरावाद के बाजारों में जो हलीमा ( मांस और मेवे को पीस कर चावल के साथ बनाया गया व्यंजन ) बिक रहा है उसमे गौ – मांस बेंचा जा रहा है ..जानकारी के आभाव में जिसे मूर्ख और अति – आधुनिक हिन्दू चटकारे लेकर खा रहे हैं …
माने आप बकरे , मुर्गे के नाम पर गौ हत्या करवा रहे हैं साथ में अपना धन जेहादिवों में बाँट रहे हैं जो कल को आप के सीने में गोली या खंजर बनके उतरेगा …
मै सभी मित्रों से निवेदन करता हूँ कि इस जानकारी को प्रचारित करवाएं और हिन्दुवों को जागरूक करें ..ताकी हैदरावादी विरयानी और हलीमा के पीछे चलने वाला खेल समाप्त किया जा सके ….