मूक वोटर लाएगा इस बार फिर से मोदी सरकार, 350 से अधिक सीटों से सरकार बनाएगी बी जे पी
क्या जन लाभकारी योजनाओं के लाभार्थी उन्हें शुरू करने वाली सरकार काे वोट देते हैं? यह सवाल इसलिए उठा है क्योंकि मौजूदा केंद्र सरकार ने कई ऐसी योजनाएं चलाई हैं. इनसे बड़ी आबादी को लाभ पहुंचा है. चुनावी रैलियों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर भाजपा के हर बड़े नेता के भाषण में आयुष्मान,उज्ज्वला ,जनधन जैसी अनेक योजनाओ की चर्चा मिल जाती है.
जिस प्रकार से महागंठबंधन होकर मोदी की खिलाफत का एजेंडा चलाया जा रहा है उससे इस देश का वोटर यह तो समझ ही गया है की है जो विरोधी पार्टियों को एक कर रहा है !
यक़ीनन सपा के कोर वोटर्स को बसपा के विलय से कष्ट हो रहा होगा वहीँ बसपा के वोटरों को सपा से ! कहीं न कहीं यह इस चुनाव पे असर जरूर डालेगा ! बुद्धिजीवी वर्ग ऐसी स्थिति में दुसरे दल के साथ ही जाना चाहेगा, वहीँ राहुल गांधी द्वारा लगातार राफेल के विषय में झूट बोलकर वोटर्स को बरगलाने का प्रयास निष्फल होता जा रहा है ! ऐसे में अब भले ही मोदी लहर न दिख रही हो पर मूक वोटर इस बार भी साथ ही जायेगा !
बसपा के कोर वोटर में सेंध आगा चुकी बीजेपी मुस्लिमो को भी प्रभावित करती दिख रही है ! जिस प्रकार से पिछले पांच सालो में धार्मिक दंगे न के ही बराबर हुए हैं उससे आम खुश रही है ! जहाँ तक युवानो का सवाल है तो सर्जिकल स्ट्राइक जैसे कार्यो से बीजेपी ने अपनी ख़ास जगह बनाई है वहीँ रोजगार के विषय में अधितक पढ़ा लिखा युवक सिर्फ सरकारी नौकरी रोजगार न हो कर अन्य विकल्प भी इस सरकार में खुलें हैं !
कांग्रेस के खिलाफ बने माहौल को बीजेपी ने बड़ी चतुराई से भुनाया है ! यह तो सभी जानते हैं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की जीवन शैली सात्विक एवं अत्यंत सरल है ! विगत पांच वर्षो में जिस प्रकार से अंतराष्ट्रीय समाज में भारत का मान बढ़ा है यह किसी से छुपा हुआ नहीं है !
ऐसे में यह कहना बिलकुल गलत न होगा की इस बार पिछली बार से ज्यादा सीट से बीजेपी दुबारा सरकार बनाने जा रही है !
लोकसभा चुनाव में बड़ी संख्या में मतदाताओं का मौन राजनीतिक दलों के लिए अबूझ पहेली बना हुआ है। हर राज्य में नजर आ रहे अलग-अलग समीकरण के चलते दूसरा चरण पूरा होने के बाद भी सियासी बयार का रुख समझना राजनीतिक धुरंधरों के लिए मुश्किल है। जानकारों का कहना है कि विभिन्न राज्यों में मतदान प्रतिशत का रुझान किसी उलटबांसी से कम नहीं है।
उत्तरप्रदेश व बिहार जैसे राज्यों में सत्ता पक्ष की ध्रुवीकरण और हिन्दुत्व को धार देने की कोशिश को विपक्ष के जातीय समीकरण से बड़ी चुनौती मिल रही है। राष्ट्रवाद का मुद्दा एक खास वर्ग को ही अपील कर रहा है। भ्रष्टाचार भी बड़ा मुद्दा नहीं बना है। रोजगार मुद्दे पर विपक्ष की घेरेबंदी के बावजूद यह मुख्य मुद्दा बनने से रह गया।