अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की मौत से जुड़े कई राज बाघंबरी मठ की दीवारों के पीछे छिपे हुए हैं। उन्हें एक-एक कर खोले जाने की जरूरत है। कम लोग जानते हैं कि साधु-संतों की देश की सबसे बड़ी आध्यात्मिक संस्था अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष को वाई श्रेणी की विशेष सुरक्षा प्राप्त थी।
चौंकाने वाली बात यह है कि जिस दिन फंदे से लटकता महंत का शव पाए जाने की सनसनीखेज घटना सामने आई, उस दिन उनकी विशेष सुरक्षा दस्ते के 11 जवान वहां थे ही नहीं। इतना ही नहीं, जिस कमरे में फांसी लगाए जाने की बात कही जा रही है, वहां की परिस्थितियां भी घटना को लेकर गहरे संदेह पैदा करती हैं। समाधि भी जिस गड्ढे में दी गई, उसमें शव के साथ दो दर्जन से अधिक नमक की बोरियां पाटी गई हैं। ऐसे में महंत की मौत से जुड़े ऐसे कई अनसुलझे सवालों को सीबीआई समय रहते खोल पाती है या नहीं, यह भविष्य पर निर्भर करेगा।
पांच दिन पहले सोमवार को बाघंबरी गद्दी मठ में महंत नरेंद्र गिरि की मौत कैसे और किन परिस्थितियों में हुई इसका सच जानने के लिए हर कोई आतुर है। इस घटना के पीछे सबसे बड़ा सवाल उनकी सुरक्षा को लेकर खड़ा हो रहा है। दरअसल महंत नरेंद्र गिरि को वाई श्रेणी की विशेष सुरक्षा मिली हुई थी। पुलिस अफसरों के मुताबिक महंत नरेंद्र गिरि को मिली वाई श्रेणी की सुरक्षा में पीएसओ, हेड कांस्टेबल और कांस्टेबल समेत कुल 11 जवानों की तैनाती थी। महंत की सुरक्षा के लिए जवानों की आठ-आठ घंटे की तीन शिफ्ट में ड्यूटी लगाई गई थी। साथ में पुलिस स्कॉर्ट भी उनके साथ चलती थी।
कहा जा रहा है कि नियमानुसार ऐसी शख्सियत के आराम करने अथवा सोने दौरान भी उनके कमरे के बाहर एक सुरक्षा गार्ड की तैनाती रहनी चाहिए। लेकिन, जिस समय महंत की मौत की बात कही जा रही है, तब वहां कोई गार्ड तैनात नहीं था। अलबत्ता किसी सेवादार ने जब चाय देने के लिए कई बार दरवाजा खोलवाने की कोशिश की और फोन करने पर उनका मोबाइल नहीं उठा, तब दरवाजा तोड़कर मठ के शिष्य भीतर घुसे। यहां भूतल पर बने उस कक्ष का दरवाजा तोड़कर भीतर घुसने वाले शिष्यों की बात कितनी सच है, यह भी गहरी जांच का हिस्सा हो सकता है।
इसलिए कि जिस कक्ष में महंत का शव मिला, उससे संबद्ध बाथरूम का दरवाजा भीतर से लिंक होने के साथ ही बाहर भी खुलता है। खुफिया विभाग ने घटना के बाद उस कक्ष के चोर दरवाजे की जानकारी उच्चाधिकारियों को दी थी। इतना ही नहीं, महंत के पार्थिव शरीर को जब समाधि दी गई, तब शव के साथ नमक की बोरियां पहले पाटी गईं। इसके पीछे कुछ संतों ने शास्त्रोक्त पद्धति का हवाला दिया था, ताकि हड्डियां भी गल जाएं और सबकुछ परमात्मा में विलीन हो जाए।