किसानों के मुद्दे पर सियासत ज्यादा…काम कम,

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किसानों के मुद्दे पर बात से पहले कोविड महामारी के दिनों को याद करें। सारी अर्थव्यवस्था पटरी से उतर गई। शहरों से पलायन बढ़ा। लोग बेरोजगार हुए। किसानों ने ही सबको संभाला। किसानों ने साबित कर दिया कि वे अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। यूपी की करीब 68 फीसदी आबादी की निर्भरता आज भी खेती-किसानी पर है। इसमें भी 93 प्रतिशत छोटे (लघु) व मझोले (सीमांत) किसान हैं। हर चुनाव में सियासत के केंद्र में ये किसान होते हैं। वादे होते हैं। वादों पर सियासी फसलें लहलहाती हैं। पर, यह भी उतना ही सच है कि अन्य सेक्टर के मुकाबले किसानों के हिस्से उतना फायदा नहीं आता।
अब बात सियासत की। भाजपा का 14 वर्ष का सत्ता का वनवास 2017 में खत्म हुआ। विधानसभा में 312 सीटें अगर भाजपा ला सकी तो इसमें किसानों की कर्जमाफी के वादे का बड़ा योगदान रहा। लोकसभा चुनाव में भी 49.6 फीसदी वोट शेयर भाजपाने हासिल किए तो इसका भी बहुत हद तक श्रेय किसानों को जाता है। यह सब तब था जबकि किसानों का पूरा कर्ज माफ किए जाने के बजाय एक-एक लाख रुपये ही माफ हुए। 6000 रुपये सालाना सम्मान निधि भी किसानों को रास आई। सिंचाई परियोजनाओं सहित कई अधूरी परियोजनाएं पूरी हुई हैं। पर, तीन कृषि कानूनों को लेकर किसान आंदोलन ने जिस तरह से सियासत को गरमाया, उसका असर चुनावी समीकरणों पर तो पड़ेगा ही।


अब बात किसानों के मुद्दों की। किसानों के मन की। गोंडा के प्रगतिशील किसान आशीष सिंह कहते हैं, पिछले पांच वर्षों में किसानों के लिए कई सकारात्मक पहल हुई। किसान सम्मान निधि शुरू की गई। वर्षों से कई अधूरी नहरें पूरी की गईं हैं, जिससे सिंचाई में सहूलियत बढ़ी है। कृषक उत्पादक समूह (एफपीओ) बनाकर किसानों को प्रोत्साहन दिया गया है। आपदा राहत की मदद सीधे खाते में पहुंच रही है। कृषि उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहन देना शुरू किया गया है। बेशक इन सबसे किसानों की आय भी कुछ बढ़ी है। पर, किसानों के सामने चुनौती उससे बड़े अनुपात में बढ़ गई है। रामपुर के कृषक उद्यमी अमित वर्मा कहते हैं, खाद-बीज की कीमतें बढ़ने के साथ ही अब कहीं ज्यादा मजदूरी चुकानी पड़ रही है।

छुट्टा पशुओं का डर: फसल बचाने के लिए बाड़बंदी पर छमाही खर्च हो रहे 10 हजार तक
गोरखपुर में कृषक उत्पादक समूह का संचालन कर रहे किसान महेंद्र प्रताप यादव कहते हैं, लालफीताशाही वाली नीति से सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद छुट्टा जानवरों से फसलों के नुकसान की समस्या का समाधान नहीं हो पाया है। हर छमाही 8-10 हजार रुपये फसलों की बाड़बंदी का खर्चा बढ़ गया है।

जो खर्च नहीं कर पाते, उनकी फसल चौपट हो जाती है। पराली की समस्या का लाभप्रद समाधान संभव है, लेकिन उस ओर ध्यान नहीं दिया जाता। उल्टा किसान इसके लिए उत्पीड़न को मजबूर होता है। चुनावों में किसानों की इन समस्याओं पर न तो कोई चर्चा कर रहा है और न ही समाधान बता रहा है। कोविड काल मे उद्योगों, कारोबारियों को कई सहूलियतें दी गईं, किसान को क्या मदद मिली? फसल बचाने में लगने वाली बाड़ के खर्चे में सरकार को मदद करनी चाहिए।


बागपत के प्रगतिशील किसान धर्मेंद्र तोमर बताते हैं, समय से गन्ना मूल्य के भुगतान में विफल रहने पर ब्याज अदायगी का नियम है। क्या कभी तय समय सीमा में भुगतान होता है? फिर सरकार मिलों से ब्याज क्यों नहीं दिलाती? तय अनुपात से ज्यादा गन्ना का उत्पादन हो जाए, तो बिकना मुश्किल। युवा किसान अरविंद तिवारी सवाल उठाते हैं, यदि अनाज, फूल व फल आसानी से बिकेगा नहीं, पूरी कीमत मिलेगी नहीं, तो किसान का भला होगा कैसे? खेत से स्थानीय मंडी व मार्केट के बीच दो से आठ गुना तक कीमत में अंतर रहता है। यह खाईं पाटे बिना किसान की तरक्की संभव नहीं है।
एनएसएस का सिचुएशन एसेसमेंट सर्वे बताता है कि 2013 से 2019 के बीच किसानों की आय में वृद्धि हुई तो उनके कर्ज में भी भी इजाफा हुआ है। छह वर्षों के बीच राष्ट्रीय स्तर पर किसान परिवारों की सालाना आमदनी में औसतन 22,932 रुपये की बढ़ोतरी हुई, जबकि यूपी में यह वृद्धि 14,484 रुपये
तक सीमित रही। इसी अवधि में राष्ट्रीय स्तर पर किसानों के औसत कर्ज में 27,121 रुपये की वृद्धि हुई, हालांकि यूपी के किसानों पर कर्ज का बोझ 23,807 रुपये ही बढ़ा। यूपी में औसत कर्ज में कमी के पीछे योगी सरकार के एक लाख रुपये तक की कर्जमाफी को भी माना जा रहा है। केंद्र सरकार ने 6000
रुपये किसान सम्मान निधि भी देने की शुरुआत की।

किसानों की समस्याएं और समाधान के फॉर्मूले
फसल की पड़ताल कागज की जगह जमीन पर हो : फसलों से संबंधित ज्यादातर आंकड़े अनुमान पर आधारित हैं। लेखपालों के पास इतना काम है कि वे अपने इस मूल काम में सिर्फ कोरम पूरा करते हैं। खसरा पड़ताल अवधि में लेखपालों से कोई दूसरा काम न लिया जाए।
पंचायतों को सौंपा जाए गोसेवा केंद्रों का संचालन : छुट्टा गोवंश किसानों के लिए मुसीबत बने हैं। बुंदेलखंड में अन्ना पशुओं की बड़ी समस्या है। छुट्टा गोवंश संरक्षण का काम नौ विभागों को सौंप दिया गया, जबकि यह काम ग्राम पंचायतों का है। गो-संरक्षण केंद्रों को डेयरी केंद्र के रूप में विकसित कर लाभकारी बनाया जाए।
धान खरीद की जगह चावल खरीद की हो शुरुआत : सरकार एमएसपी पर धान खरीदती है। पर, इसमें क्या-क्या खेल होते हैं, किसी से छिपा नहीं है। किसान एमएसपी पर चावल खरीद को स्थायी समाधान का विकल्प बताते हैं। किसान के पास मानक का जितना चावल होगा, छन्ना निकाल लेगा। बाकी चावल किसान अपने उपयोग में ले आएगा या बाजार में बेच लेगा। स्थानीय स्तर पर चावल तैयार करने के लिए मशीनें लगेंगी जिससे स्थायी तौर पर रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
स्थानीय इकाइयों में कृषि स्नातकों के लिए सुरक्षित हों अवसर : कृषि की पढ़ाई करने वाले बेरोजगार युवाओं के लिए स्थानीय स्तर पर इसी क्षेत्र में जुड़े रोजगार बढ़ाने के प्रयास किए जाएं। जिले के कृषि स्नातकों के लिए नौकरी के स्थान आरक्षित किए जाएं।
ब्याज मिले तो नियमित हो गन्ना मूल्य भुगतान : किसानों को समय से भुगतान एक स्थायी मुद्दा बन चुका है। नियम है कि 14 दिन के अंदर भुगतान हो जाना चाहिए, वरन ब्याज देना पड़ेगा। लेकिन यह प्रावधान आज तक लागू नहीं हो पाया। यदि यह व्यवस्था लागू हो जाए तो भुगतान नियमित हो जाएगा।
एफपीओ का सरकारीकरण चिंताजनक, व्यवस्था में हो सुधार : छोटे व मझोले किसानों की तरक्की के लिए कृषक उत्पादक समूहों (एफपीओ) के गठन की पहल हुई है। नीति के बाद जारी ज्यादातर आदेश कागजी हैं। समूह बनाने वालों को नहीं पता कि एफपीओ सेल में कौन-कौन है? सेल कहां है? सेल का संपर्क नंबर क्या है? वहीं, कागजी कार्यवाही इतनी बढ़ाई जा रही है कि किसान खेती करे या कागजों में सिर खपाए। कृषि निर्यात नीति आई, पर आधे से ज्यादा जिलों में इससे जुड़े अधिकारी नहीं हैं। कार्यालय तक नहीं हैं। ऐसे में समस्याओं के समाधान के लिए किसान कहां जाएं?
बाढ़ प्रभावित किसानों को स्थायी मदद का इंतजार : हर वर्ष लाखों किसान बाढ़ जैसी स्थायी आपदा का सामना करते हैं। बाढ़ में इन्हें घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर शरण लेनी पड़ती है और सरकारी इमदाद की राह ताकनी पड़ती है। तमाम घर दूसरे-तीसरे वर्ष गिर जाते हैं। बाढ़ का नियमित सामना करने वाले गांवों को स्थायी रूप से पुनर्वासित करने की योजना पर सरकार को गंभीर रूप से काम करना चाहिए। राज्य आपदा मोचक निधि की बढ़ी धनराशि इसमें मददगार हो सकती है।

 
लघु व सीमांत किसानों का एक लाख रुपये तक का फसली कर्ज माफ हुआ।
वर्ष 2018 में पीएम किसान सम्मान निधि के रूप में 6,000 रुपये प्रति वर्ष भुगतान की शुरुआत।
33 प्रतिशत फसल के नुकसान पर भी मुआवजे की व्यवस्था। पहले 50 प्रतिशत था मानक।
गन्ना मूल्य में पहले वर्ष 10 रुपये व पांचवें वर्ष 25 रुपये प्रति क्विंटल की दर से वृद्धि।
 सरयू नहर परियोजना : 6,623,44 किमी. लंबी यह नहर परियोजना 1978 में शुरू हुई थी। इसे दिसंबर 2021 में पूरा कर लोकार्पित कर दिया गया। नौ जिलों में 29 लाख किसानों को फायदा मिलेगा।
बाण सागर परियोजना : 39 वर्ष से अधूरी यह परियोजना 2018 में पूरी हुई। मिर्जापुर व प्रयागराज के 1.70 लाख किसानों को फायदा।
अर्जुन सहायक परियोजना : 2009-10 में शुरू परियोजना नवंबर, 2021 में पूरी हुई। इससे 1.50 लाख किसानों को सिंचाई सुविधा मिलेगी।
खाद कारखाना दोबारा शुरू कराया : गोरखपुर में बंद पड़े खाद कारखाने को फिर शुरू कराया। इससे यूपी सहित कई राज्यों को फायदा मिलेगा।
बंद गन्ना मिलों का संचालन : बस्ती की मुंडेरवा और गोरखपुर की पिपराइच चीनी मिलें शुरू हुईं।
स्वामीनाथन कमेटी की संस्तुतियां लागू हों तो किसानों का हो बड़ा भला 2004 में केंद्र सरकार ने एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में नेशनल कमीशन ऑन फार्मर्स का गठन किया था। इसने अपनी आखिरी रिपोर्ट अक्तूबर, 2006 में सौंपी। मोदी सरकार ने इस रिपोर्ट के कुछ प्रावधानों को लागू किया। विशेषज्ञों का कहना है कि पूरी रिपोर्ट लागू हो तो किसानों की स्थिति सुधर सकती हैै।
कृषि को राज्यों की सूची के बजाय समवर्ती सूची में शामिल किया जाना चाहिए, जिससे केंद्र व राज्य यानी दोनों किसानों की मदद के लिए आगे आएं और समन्वय बनाया जा सके।
फसल उत्पादन कीमत से 50% ज्यादा दाम किसानों को मिले।
किसानों को रियायती दाम में बेहतर बीज मिले।
गांवों में विलेज नॉलेज सेंटर या ज्ञान चौपाल बनाया जाए।
किसानों को प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में मदद मिले।
खेतिहर जमीन और वनभूमि को गैर कृषि उद्देश्यों के लिए कॉरपोरेट को न दिया जाए।
खेती के लिए कर्ज की व्यवस्था हर किसान के लिए हो।

कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही बोले, किसानों के लिए पहले दिन से काम कर रही सरकार
प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही का कहना है, कृषि और किसानों के कल्याण के लिए प्रदेश सरकार पहले दिन से प्रतिबद्ध होकर काम कर रही है। किसान इन सबको देख रहा है और समझ रहा है। किसान सरकार को भरपूर आशीर्वाद देने को तैयार हैं। शाही कहते हैं, योगी सरकार ने अपनी पहली ही कैबिनेट बैठक में राज्य के 86 लाख किसानों की कर्ज माफी के लिए 36 हजार करोड़ रुपये देने का फैसला किया। सभी पात्र किसानों की कर्ज माफी की। 2.53 करोड़ किसानों के खाते में 35,747 करोड़ रुपये पीएम किसान सम्मान निधि के रूप में पहुंची। सरयू नहर, बाणगंगा व अर्जुन सहायक नहर परियोजनाओं को पूरा कर 20

लाख हेक्टेयर से अधिक सिंचाई क्षमता बढ़ाई। गन्ना मूल्य वर्षों तक बकाया रहता था। सरकार ने पिछली सरकारों के बकाए दिलाए और अपने समय में भुगतान सुनिश्चित कराया। किसानों की उपज का समय से खरीद व भुगतान कराया जा रहा है। 25 हजार से ज्यादा किसानों को 60 प्रतिशत अनुदान पर सोलर पंप दिए गए। बड़ी संख्या में किसानों को अनुदान पर कृषि यंत्र दिलाए गए। 250 ब्लॉकों में कृषि कल्याण केंद्र स्थापित किए गए। कृषि विविधीकरण के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। सरकार किसानों की आय दोगुना करने के अपने संकल्प पर पूरी प्रतिबद्धता से काम कर रही है, जिसका लाभ सीधे किसानों को मिल रहा है। किसानों के कल्याण का प्रयास लगातार जारी रहेगा।
टिकैत ने कहा किसानों को है समर्थन की जरूरत
किसानों की मुख्य समस्या क्या मानते हैं?
किसान तमाम चुनौतियों का सामना कर रहा है। आमदनी घट रही है। खेती-किसानी के खर्चे बढ़ रहे हैं। परेशान किसान खेती छोड़ रहे हैं। यह चिंताजनक है। फसल की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सुनिश्चित होनी चाहिए। 1967 को आधार वर्ष
मानें तो कर्मचारी एक महीने के वेतन से एक क्विंटल गेहूं नहीं खरीद सकता था। एक तोला सोना की कीमत में तीन क्विंटल गेहूं की खरीद नहीं हो पाती थी। एक क्विंटल गेहूं में 2500 ईंट आ जाया करती थी। आज किसान की स्थिति सबके सामने है। सरकारों को किसानों को सपोर्ट करना चाहिए।
स्थिति में सुधार लाने के लिए समय-समय पर तमाम सुझाव आए। स्वामीनाथन कमेटी ने महत्वपूर्ण सिफारिशें दी हैं। सरकार को फसल की कुल लागत (कास्ट) को लेकर तय सी2 के फॉर्मूले पर एमएसपी देना चाहिए। तभी किसानों की स्थिति में सुधार संभव है। किसान परिवारों के समर्थन के लिए कई अन्य तरह के प्रोत्साहन की भी जरूरत है।
किसानों को बिजली फ्री दी जाए ताकि उसे फसलों की सिंचाई करने में चिंता न रहे। किसानों के बच्चों की पढ़ाई के लिए स्थानीय स्तर पर क्वालिटी एजुकेशन हब बनाया जाए, जहां मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था हो। एग्रो बेस्ड इंडस्ट्री बढ़ाई जाएं, जिससे कृषि सेक्टर में रोजगार के अवसर बढ़ें। निजीकरण रुकना चाहिए। बड़े उद्योगों की जगह छोटे उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जाए, जिससे
गांवों में रोजगार के अवसर पैदा हों और पलायन रुके। गन्ने का भुगतान 14 दिन में सुनिश्चित किया जाए।
सरकार के आश्वासन पर आंदोलन समाप्त हुआ है। कमेटी गठन के लिए सरकार को किसानों की ओर से नाम दिया जाना है। ये नाम जल्दी ही दे दिए जाएंगे। सरकार की कार्यवाही पर हमारी नजर बनी रहेगी।

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